राह कौन सी जाऊ मै?
चौराहे पर लुटता चीर,
प्यादे से पिट गया वजीर!
चलूँ आखिरी चाल की बाज़ी या छोर विरक्ति रचाऊं?
राह कौन सी जाऊ मै?
सपना जन्मा और मर गया!
मधु ऋतू में भी बैग झर गया,तिनके बिखरे बटोरूँ मै या नयी शक्ति सजाऊं मै?
राह कौन सी जाऊ मै?
दो दिन मिले उधार में घाटे के व्यापार में!
क्षण क्षण का हिसाब जोरूं या पूंजी शेष लुटून मै?
राह कौन सी जाऊ मै?
... श्री अटल बिहारी बाजपाई!
1 comment:
Very true and inspiring poem from one of the all time best politician. I really like this poem.
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